बोईसर – बोईसर तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में असंगठित कामगारों की समस्याओं के प्रति जनप्रतिनिधियों की अनदेखी से उनकी स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। विकास के बड़े वादे करने वाले नेता अब इन कामगारों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। जानकारी के अनुसार, पालघर जिले में ठेका मजदूरी पर काम करने वाले असंगठित कामगारों का लगातार शोषण हो रहा है। जहां मजदूरी 8 घंटे की होनी चाहिए, वहीं उन्हें 12 घंटे काम करने के बाद भी सही भुगतान नहीं किया जाता।
इसके अलावा, काम के नियमों के अनुसार जो सुविधाएं इन मजदूरों को मिलनी चाहिए, उन पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। विशेष रूप से, महिला कामगारों का शोषण अधिक हो रहा है, जिन्हें 9 से 10 घंटे की ड्यूटी के बदले केवल 200 से 250 रुपए मजदूरी दी जाती है। इस गंभीर स्थिति पर न तो कोई नेता ध्यान दे रहा है और न ही किसी पार्टी के पदाधिकारी उनके अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं।
यहां तक कि आमदार और खासदार जैसे केवल चुनावी समय पर ही कामगारों की याद करते हैं। जब भी उन्हें कंपनी में श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत होती है, तो वे वहां पहुंच जाते हैं, लेकिन जब बात वोट मांगने की आती है, तब ये नेता सामने आते हैं। कामगारों का कहना है कि जनप्रतिनिधि केवल अपने स्वार्थ के लिए दिखावे का समर्थन करते हैं, लेकिन असंगठित कामगारों के अधिकारों की बात आने पर वे गायब हो जाते हैं।
इस पर सवाल उठता है कि आखिर पालघर जिले में इन असंगठित कामगारों के हक की लड़ाई कौन लड़ेगा? क्या इन्हें केवल वोट बैंक के रूप में ही देखा जा रहा है?
कामगारों का दर्द यह है कि उनकी मेहनत का सही मूल्य और सुविधाएं मिलनी चाहिए, लेकिन उनकी समस्याओं को गंभीरता से लेने वाला कोई नहीं है। लगता है कि जनप्रतिनिधियों की प्राथमिकता केवल चुनावी लाभ है, न कि कामगारों की भलाई।
यह स्थिति न केवल कामगारों के लिए चिंताजनक है, बल्कि समाज के लिए भी एक गंभीर सवाल है। क्या असंगठित कामगारों को उनकी स्थिति से बाहर निकालने के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे, या उन्हें इसी तरह उपेक्षित रखा जाएगा?